1. कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ – विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?
उत्तर:- कवि आम व्यक्ति से अलग नहीं है तथा सुख-दुःख, हानि-लाभ को झेलते हुए वह अपनी यात्रा पूरी कर रहा है। कवि संसार के दायित्व को भार समझता है। वह सांसारिक कष्टों की ओर ध्यान नहीं देता बल्कि वह संसार की चिंताओं के प्रति सजग है। वह अपनी कविता के माध्यम से संसार को भारहीन और कष्टमुक्त करना चाहता है।
2. ‘जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं‘ – कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?
उत्तर:- ‘जहाँ पर दाना रहते हैं, वहीं नादान भी होते हैं’ – पंक्ति के माध्यम से कवि कहते है कि मनुष्य सांसारिक मायाजाल में उलझ गया है और वह अपने मोक्ष प्राप्ति के लक्ष्य को भूल गया है। कवि सत्य की खोज के लिए, अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है।
3. मैं और, और जग और कहाँ का नाता – पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।
उत्तर:- यहाँ ‘और’ शब्द का प्रयोग तीन बार हुआ है। अतः यहाँ यमक अलंकार है।
• पहले ‘और’ में कवि स्वयं को आम आदमी से अलग बताता है।
• दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया है।
• तीसरे ‘और’ के प्रयोग संसार और कवि में किसी तरह के संबंध को नहीं दर्शाने के लिए किया गया है।
4. शीतल वाणी में आग – के होने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:- कवि ने यहाँ विरोधाभास अलंकार का प्रयोग किया है। इस का आशय यह है कि कवि अपनी शीतल और मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखते हैं ताकि वह लोगों को जागृत कर सके।
5. बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?
उत्तर:- पक्षी दिनभर भोजन की तलाश में भटकते हैं। उनके बच्चे दिनभर उनकी प्रतीक्षा में रहते हैं। शाम को उनके लौटने के समय बच्चे कुछ पाने की आशा में घोंसलों से झाँक रहे होंगे।
6. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है – की आवृत्ति से कविता की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर:- दिन जल्दी-जल्दी ढलता है-की आवृत्ति से यह प्रकट होता है कि लक्ष्य की तरफ़ बढ़ने वाले मनुष्य को समय बीतने का पता नहीं चलता। गंतव्य का स्मरण पथिक के कदमों में स्फूर्ति भर देता है।